काव्यपत्र आपका स्वागत करता हैं। (काव्यपत्र पर कविताओं को सुनने की सुविधा भी उपलब्ध हैं।)🕺 🌈आधुनिक हिंदी कविताओं अथवा काव्य रचनाओं का एक बेहतरीन काव्य संग्रह। कविताएँ पढ़ना, लिखना, सीखना, गाना और दिखाना सब एक साथ एक जगह यानी 'काव्यपत्र संगम'। ( 🎤 कविताएँ सुनने के लिए ऊपर ☝️ 'काव्यस्वर' नाम से खोज करें।) ..... (तो अब सुनें-सुनाएँ और मुस्काएँ!! 🌝 🎉 )

नैतिक पतन

 विरासत का सत


महंगाई, बेरोजगारी और अपराध के इस निरंतर बढ़ते हुए दौर में कुछ ऐसा भी है जो लगातार गिरता ही चला जा रहा है।

जी हाँ, पीढ़ी दर पीढ़ी जिसमें लगातार गिरावट, और गिरावट ही देखने को मिली है, तो वो है - नैतिकता। 

अब ये फैसला आप पर निर्भर करता है कि यह खुशी से खुश होने वाली बात है या मायूसी के साथ, दुखी। 

मेरे हिसाब से दोनों ही भावों से कुछ खास बदलाव की अपेक्षा करना, महज व्यर्थ मात्र ही होनी चाहिए। क्योंकि बदलाव उठते भावों के संगम मात्र से नहीं बल्कि भार उठाने की सार्थकता से ही संभव हो पाते हैं।


वैसे तो हम समाज, सरकार, शिक्षा और न जाने कितने ही  दूसरे मौजूद कारकों को बड़ी ही आसानी से जिम्मेदार ठहरा सकते हैं। ओर इसको पूर्णतः गलत भी नहीं माना जायेगा। 

लेकिन हां, इसके साथ-साथ कुछ ऐसा भी है जिस पर विचार करना हम सब की नैतिक जिम्मेदारी भी होनी चाहिए। ओर वो है- 'हमारे अपने प्रयास'। 


कहीं हम स्वयं ही नैतिकता का पतन तो नहीं कर रहे हैं? 

क्या हम नैतिकता का महत्व जानते हैं? 

कहीं हम स्वयं भी, पैसों की भागदौड़ में जिम्मेदारी के निर्वहन को, भूल तो नहीं गए हैं?

क्या हमनें, विकास के साथ विरासत को बचाने का प्रयास मात्र भी किया हैं?



विचार कीजिए, आज ये अधूरे सवालों के जवाब ही हमारे वास्तविक अधूरेपन के कारक तो नहीं हैं।

अगर, गौर से सोचा जाए तो, शायद हां। वक्त की चाल के चक्र में हम ऐसे फंसे की, पैसा ही एक मात्र कामयाबी का सूत्र बना। ओर कमाई एक मात्र माध्यम।

बस, यहीं पर पतन को पर्याप्त वक्त मिला, अपनी उपस्थिति को बुद्धिजीवी समाज में सुव्यवस्थित और सुदृढ़ कर, दिन-प्रतिदिन ज्यादा से और भी ज्यादा प्रभावशाली बनने का।

अगर, आज हम बात भी करना चाहते है तो केवल पड़ोसी के घाव की, सरकार के प्रभाव की या फिर चटपटे और मसालेदार काल्पनिक मनोरंजन मात्र की।

अगर, इस समाज में सभी लोग केवल अपने बच्चों को, समाज के 'विरासत का सत' मात्र देने का प्रयास करें तो भी कल के समाज की दिशा और दशा, दोनों में अकाल्पनिक सुधार को महसूस किया जा सकता हैं। जो कि, उजाले की एक किरण बनकर अंधकार की गहन सन्नाटेदार काली रात्रि की बुनियाद के मध्य, उजाला का बीज बो कर मानव समाज में लुप्त होते मानवीय ढंगों को बचाने की एक सुदृढ़ शरुआती नींव, तो निश्चित ही बन सकता हैं।


याद रहे कि पैसे महंगाई के हैं, आप के नहीं। वहीं अगर विरासत की बात करें तो वह आप के अपनों की हैं। 

अतः सार्थक विकास के साथ विरासतमय नैतिकता की आवश्यक उपयोगिता को संभालकर ही हम अपने भविष्य को भी संवार सकते हैं। 


अतः सार्थक संतुलन बनाए रखें। क्योंकि चेला तो गुरु से बड़ा  भी हो सकता हैं लेकिन, बेटा तो बाप से छोटा ही होना चाहिए।


© महेश कुमार

महेंद्रगढ़ (हरियाणा)

9015916317



नैतिक पतन नैतिक पतन Reviewed by Mahesh Kumar on 12/28/2022 12:50:00 pm Rating: 5

कोई टिप्पणी नहीं

कृप्या, उपरोक्त कविता के प्रति अपने विचारों से अवगत कराएं तथा पृष्ठ के अंत मे जाकर काव्यपत्र को फॉलो करें। 🙏