माँग रहा मजबूर सदा, यूँ कर्जा बढ़ता जाय! | हिंदी कविता| महंगाई की समस्या| महंगाई का अर्थ| महंगाई के कारण| महंगाई क्या हैं?
भूमिका:
सगलें औंधे मुँह गिरे,
पाँव पछाड़े पूँछ?
दस-बीस की कदर नहीं,
रंग गुलाबी पूछ ©।
(वर्तमान हालातों को मध्यनजर रखते हुए एक निर्धन-कामगार के मन में उमड़ते भावों की एक काव्य कल्पना।)
(महंगाई पर कविता)
ले जाय कमाई महँगाई,
खर्चा बढ़ता जाय।
जन मिल लाखों काम करें पर,
चंद चमकते जाय।
चंदा बढ़कर चाँद बना,
लूटे शिक्षा हाय!
सुन दालों के भाव भरे मन,
निर्धन कैसे खाय।
पानी तक तैरे पैसों में,
तेल हमें तल जाय।
ईंटों का जो भाव सुने वो,
चकरा के गिरजाय।
आधुनिक हुआ देश मगर लो,
छत टपकती जाय!
मुफ्त बहे चाहें रक्त यहाँ,
वक्त नहीं मिल पाय।
माँग रहा मजबूर सदा यूँ,
कर्जा बढ़ता हाय!
जन लाखों मिल काम करें पर,
चंद चमकते जाय।
केन्द्र जन से हरे-भरे से,
खाद ही छुपता जाय।
दुगने दाम हुए माचिस के,
सब को रही जलाय।
कलम नहीं पक्षधर किसी की,
कर्म रहे लिखवाय।
ले जाय कमाई महँगाई,
खर्चा बढ़ता जाय।।
(सरसी छन्द)
युवा कवि: ✍️
महेश कुमार (हरियाणवी)
महेंद्रगढ़, ट्विटर @mk_poems
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आधुनिक कविताओं का आनंद लेने हेतु आपके अपने काव्यपत्र के साथ निरंतर बने रहें।
💐💐💐
गजब महंगाई
Reviewed by Mahesh Kumar
on
11/20/2021 09:36:00 am
Rating:
Mahngai ka issue to wastav me hi vyapak hai 👏👏
जवाब देंहटाएंसच कहाँ! महंगाई के कुछ कारण अंतरास्ट्रीय हैं तो कुछ राष्ट्रीय।
हटाएंइसलिए राष्ट्रीय कारणों में बदलाव मात्र करने से भी, बढ़ती हुई कीमतों की व्यापकता को काफी नियंत्रित किया जा सकता हैं।
मैं किसी पार्टी विशेष का आलोचक या पक्षधर नहीं हूँ लेकिन फॉरेन के साथ, राष्ट्रीय नीतियों का समावेश बनाये रखना उतना ही आवश्यक है जितना कि सुरक्षा के साथ उन्नति।
अनावश्यक महंगाई का असर, सीधे तौर पर जनता की जीवन शैली पर प्रभाव डालता हैं।
दुर्भाग्य या प्रकृति के प्रभाव की वजह से, गरीबी में जीवन यापन करने वाले समुदाय के सभी कर्मशील देशवाशियों के लिए यह भी किसी आपदा व आफत की तरहा, संकट की दीवार खड़ी करने में कोई कमी या कसर नहीं छोड़ता।
बहुत खूब लिखते हो आप
हटाएंआज के चलते दौर की तस्वीर को बहुत ही अच्छे तरीके से दिखा रहे हो आप,,
हम पड़ते रहे और लिखते रहो आप ...God bless you 👍
आप के इस स्नेह एवं समर्थन के निए धन्यवाद! 🙏
हटाएंकाव्यपत्र के साथ निरतंर बने रहें।
"Siya" सार्थक लेखन👌👌
जवाब देंहटाएंधन्यवाद Siya जी 🙏
हटाएंवर्तमान हालातों में तेजी से बढ़ती महँगाई आज यही गजब ढहा रही है।
हमारे देश मे एक बार भाव बढ़े तो कभी गिरते नही आदमी को उसके हिसाब से कमाना पड़ता है।
जवाब देंहटाएं(अमरेन्द्र सहाय अमर)
सत्य कहाँ आपने👍👍
हटाएंशायद यही हमारी खासियत भी है अपनी और विशेषता भी।
महंगाई पर अपने विचार सांझा करने के लिए धन्यवाद अमरेंद्र भाई 🙏
सार्थक लेखन
जवाब देंहटाएंधन्यवाद रुचिता जी! गजब महंगाई एवं काव्यपत्र पर अपनी कीमती प्रितिक्रिया देने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार। ✍️
हटाएंसार्थक लेखन
जवाब देंहटाएंशुक्रिया जी! कृप्या काव्यपत्र के साथ सहयोग एवं निरन्तरता बनाएं रखने का प्रयास अवश्य करें। 🙏
हटाएंबहुत ही सुंदर विचार और लेखनी है आपकी।🙏🏻🙏🏻
जवाब देंहटाएंधन्यवाद गुड्डी जी! वर्तमान हालातों को अनुभव कर उनका काव्यात्मक वविश्लेषण करने का प्रयास था।
हटाएं'गजब की महंगाई' नामक कविता पर आप के इस स्नेह के लिए हम आपके अति आभारी हैं।
कृप्या काव्यपत्र के साथ निरन्तर बने रहें। 🙏
Apne bahut bahut acha likha hai 👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंधन्यवाद! आप की इस कीमती टिप्पणी एवं उपयोगी समय सांझा करने के लिए बहुत-बहुत आभार 🙏🙏
हटाएंकाव्यपत्र के साथ बनें रहियेगा।
Very thoughtful
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जी! अपना कीमती समय एवं गजब महंगाई पर प्रतिकिया देने के लिए काव्यपत्र आपका आभारी हैं। 🙏🙏
हटाएंकाव्यपत्र के साथ निरंतर बने रहें। 🤝
बेहद उम्दा विचार के साथ..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना 👌👌👌👏👏👏👏👏👏
गजब महंगाई नामक इस हिंदी कविता पर अपने विचार सांझा करने के लिए एवं हमें प्रोत्साहित करने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद डॉली जी 🙏
हटाएंकाव्यपत्र के साथ निरंतर बने रहें। ✍️