प्रेम क्या करें
तेरे ज़िक्र से भी बुख़ार आये, तो क्या करें? | प्रेम-कविता ।
भूमिका:
प्रेम को कहो किस रूप में परिभाषित करूं।
रिश्तों-कसमों के बीच कैसे विभाजित करूँ।। ©
(प्रेम क्या करें)
तेरी तस्वीर देख के ख़ुमार आये तो क्या करें।
हम फ़िर हो के बेक़रार आये तो क्या करें।।
हम फ़िर हो के बेक़रार आये तो क्या करें।।
तेरे लम्स की ख़्वाहिश न की बुलन्द कभी।
सिर्फ़ तेरे नाम से निखार आये तो क्या करें।।
तेरी दहलीज़ पे कदम कभी रखा ही नहीं।
तेरी गली से गुज़र क़रार आये तो क्या करें।।
मौसमों के असर की हमें तो ख़बर ही नहीं।
तेरे ज़िक्र से भी बुख़ार आये तो क्या करें।।
तेरी एक झलक से भी सँवर जाते हैं हम।
तेरी बेरुख़ी पे भी प्यार आये तो क्या करें।।
तू देख किसी सिम्त कोई फ़र्क नहीं हमें।
तीर दिल के फ़िर भी पार आये तो क्या करें।।
बहुत रोका ख़ुद को नाम-ए-इश्क़ से मग़र।
फ़िर भी होंठों पे इज़हार आये तो क्या करें।।
फ़िर भी होंठों पे इज़हार आये तो क्या करें।।
आज करके दीदार तेरा ख़्वाब ही ख़्वाब में।
ग़ुल से ही नज़र सब ख़ार आये तो क्या करें।।
तेरी तस्वीर देख के ख़ुमार आये तो क्या करें।
हम फ़िर हो के बेक़रार आये तो क्या करें।।
हम फ़िर हो के बेक़रार आये तो क्या करें।।
कवियत्री की आवाज में सुनिए (काव्यस्वर):
युवा कवयित्री:©
डॉ. रश्मीत कौर
इंस्टाग्राम: (@77rashmeet)
होता उजालों से शुरू फिर साथ अँधेरी रात तक।
जन्म का प्रारंभ यही और साथ अंतिम श्वास तक।
राष्ट्रीय राजधानी यानि भारत के दिल दिल्ली से अस्तित्व में आई, कल्पनाओं एवं संभावनाओं की एक युवा तथा अनूठी कलम का नाम है- डॉ रश्मीत कौर।
(नोट: यह एक कॉपी राइट © कविता है। अतः किसी की प्रकार के व्यापारिक इस्तेमाल से पहले सम्बंधित कवि/कवयित्री से अनुमति लेना अनिर्वाय हैं।)
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Reviewed by Mahesh Kumar
on
4/10/2022 06:18:00 pm
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