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शैतान

भय को भी भय यहाँ, पग को टिकाएं कहाँ। जमते कदम मि..| हिन्दीकविता | काव्यपत्र | कवितछंद | प्रेरक_कविता

भूमिका:

नेक राह पर चल, 
बार बार देखा मैंने।
पैर चलने के देख, 
खुद आदी हो गए ©।

शराफत की राह पर चनले वाले लोग, उपद्रव से दूर रहते हैं। पर क्यों? क्या वे कमजोर हैं या डरपोक? 

प्रस्तुत है, मानव के इसी व्यवहारिक रहस्य पर आधारित हिंदी काव्यरचना 👇।

( शैतान )

हूँ बच-बच घूमता, 
मैं देखता ना जान के।
कैसा लगता है रंग, 
अपना शैतान के।

एक यहाँ एक वहाँ, 
भरे-भरे घूमते हैं।
मौन हूँ मैं उड़ना हैं, 
मुझे लंबा ठान के।



उसकी है सोच वही, 
समझे जो समझेगा।
हम तो सवार नहीं, 
गिरते विमान के।

भय को भी भय यहाँ, 
पग को टिकाएं कहाँ।
जमते कदम मिले, 
ले भले इंसान के।



हूँ बच-बच घूमता, 
मैं देखता ना जान के।
कैसा लगता है रंग, 
अपना शैतान के।।©

उसकी पसंद रही
खुद-ही जलेगा वही
हम तो खिलेंगे संग
खुले आसमान के।


कुछ ऐसा कर जाएं
याद बार-बार आएं।
हरा बन हर जाएं
दुखड़े जहांन के।

अपना ईनाम यहीं
प्रेरणा का धाम यहीं।
दाम तो चलेगा नहीं
दर भगवान के।


सब ही अलग सही
कमजोर कोई नहीं
स्वभाव संग दौड़ते
कदम इंसान के।

कैसा लगता है रंग, 
अपना शैतान के।©                          ( कवित छंद ) 



कवि की आवाज में सुनिए: (जल्द आ रहा हैं)





युवा कवि:
महेश कुमार (हरियाणवी)
महेंद्रगढ़, +91-9015916317


परिचय: महेश कुमार यादव, ईश्वर के नाम से अपने नाम की शुरुआत करने वाले अनोखे प्रदेश हरियाणा के एक बहुत ही शांत, पुराने तथा कृषि प्रधान जिला महेंद्रगढ़ के रहने वाले है। 
इनकी कलम अकसर मानवीय चेतना तथा सवेंदनाओं पर चलना अत्यधिक पसंद करती हैं।

नेक राह पर चल, 
बार बार देखा मैंने।
पैर चलने के देख, 
खुद आदी हो गए ©।
                                                    

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शैतान शैतान Reviewed by Mahesh Kumar on 4/29/2022 06:00:00 am Rating: 5

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