अक्षर दीप
पग-पग खड़ी चुनौतियाॅं, लेकर पीर अपार।
जीवन-पथ में तू मगर, पथिक न जाना हार।।। | दोहे | हिंदी कविता|
भूमिका:
भीतर अपने बूँद को, रखती जैसे सीप।
प्यारा दोहा छंद है, ऐसा *अक्षर दीप©।।
(अक्षर दीप)
मन मंदिर में जल उठा, आशाओं का दीप।
जैसे जलकण को मिले , कोई सुंदर सीप।।
मन पंछी! अब जाग तू, बीत चुकी है रात।
पुनः दिवाकर पूर्व से, लाये नवल प्रभात।।
देखी सागर की छटा, लहर उठी उत्ताल।
फेंका बालक भानु ने, अपना स्वर्णिम जाल।।
अरुणोदय की छाँव में, जागे जब दिनमान।
लोचन खुले सरोज के, खग ने छेड़ी तान।।
सतत् प्रवाहित हो रही, धारा गंगा संग। ©
शिखर-शिखर भूधर छुए, हिमवन धवल अनंग।।
घर- घर चहकें बेटियाँ, देखें स्वप्न अनंत।
जब नूपुर रुनझुन करे, उठता लहक वसंत।।
ईश रचित इस लोक में, मोह न करना प्राण।
स्वार्थ-भाव को त्यागकर, करो जगत-कल्याण।।
सत्यमेव जयते बने, मानवता का धर्म।
परहित जीवन लक्ष्य हो, यही धर्म का मर्म।।
नर्म-नर्म हैं गुनगुने, सूर्य-रश्मि-से छंद।
मधुर रसीले लग रहे, श्रम गीतों के बंद।।
भर कर अक्षत से कलश, बैठी द्वार समीप।
उर की ड्योढ़ी जल रहा, एक प्रतीक्षा दीप।। ©
कवयित्री: ©
श्रीमती प्रीति शर्मा
रीवा (मध्य प्रदेश)
कच्ची मिट्टी को आकार देने के लिए निरंतर प्रयास रत कलम, रीया, मध्यप्रदेश में एक शिक्षिका के साथ-साथ, अपनी बेहतरीन रचनाओं के लिए सम्मानित कवयित्री- श्रीमती प्रीति शर्मा।
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(नोट: यह एक कॉपी राइट © कविता है। अतः किसी की प्रकार के व्यापारिक इस्तेमाल से पहले सम्बंधित कवि/कवयित्री से अनुमति लेना अनिर्वाय हैं।)
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अक्षर दीप
Reviewed by Mahesh Kumar
on
3/03/2022 07:33:00 am
Rating:
वाह प्रीति जी सुन्दर दोहे!
जवाब देंहटाएंअरविन्द सोनी "सार्थक"।
आदरणीय , अक्षर दीप के चुनिंदा दोहों से निर्मित इस रचना पर आपकी प्रतिक्रिया हमारे लिए अनमोल है। आपको कोटि-कोटि धन्यवाद ।लिखना सार्थक हुआ और नूतन सृजन करने की ऊर्जा मिली । मैं आपकी हृदय से आभारी हूँ ।
हटाएंकाव्य पत्र के साथ बने रहें 🙏