शांत बलधारी
कहीं बन्दूक की गोली है, कहीं अणु धधकते आग।...... |हिंदी_कविता| शांतिपरकविता| महात्मागाँधीपरकविता |
जलते-बिलखते शोलों ने फिर
गांधी जी विचारे है।
पुनः चले आओ बलधारी
जनता शान्ति पुकारे है।।
दधक उठी है सारी धरती
मेघ से चलती गोलियां।
देख सहम गई भोली जनता
अत्याचारी टोलियां।
छल चलन के पलते दौर में
नन्हे नैनं निहारे है।
पुनः चले आओ बलधारी
जनता शान्ति पुकारे है।।
स्नेह सब्र का गायब किस्सा
प्रेम में मतलब साध रहे हैं।
केवल बढ़ता लालच गुस्सा
जाति-धर्म विवाद रहे हैं।
मानव से मानव को संकट
मुख दौलत सत्कारे है।
पुनः चले आओ बलधारी
जनता शान्ति पुकारे है।।
अफगान पाक सीरिया ने
लाश बिछा दी धरती पर
पूर्व-पश्चिम पखवाड़े में
आग लगी है अरथी पर।
व्यर्थ-गर्थ में चीनी चीखें
कहें सागर हमारे है।
पुनः चले आओ बलधारी
जनता शान्ति पुकारे है।।
कहीं बन्दूक की गोली है
कहीं अणु धधकते आग।
वक्त है थोड़ा चलना ज्यादा
कहे भाग सके तो भाग।
अपने भी है गैरो जैसे
बड़े सूने सितारे है।
पुनः चले आओ बलधारी
जनता शान्ति पुकारे है।।
जलते-बिलखते शोलों ने फिर
गांधी जी विचारे है।
पुनः चले आओ बलधारी
जनता शान्ति पुकारे है।।
Reviewed by Mahesh Kumar
on
9/24/2022 08:19:00 pm
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